नियमित पढ़ाई
एक साल तक जमकर तैयारी की। तीन से चार घंटे की नियमित पढ़ाई की और परीक्षा के समय वे केवल तीन-तीन घंटे सोती थीं। उन्होंने इस परीक्षा के लिए इलाहाबाद के अपनी सीनियर्स से सहायता ली। सफलता का श्रेय अपने मेंटर अरुण सिंह को भी देती हैं जिन्होंने बताया कि क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है। सफलता का मंत्र - कम से कम और सकारात्मक लोगों को अपने आसपास रखना चाहिए।
मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई के दौरान उन्हें एक प्रोजेक्ट के लिए नेपाल जाना पड़ा था. वहां उन्हें वर्ल्ड बैंक और साउथ एशियन इंस्टीट्यूट के एक प्रोजक्ट में वहां के लोगों के अच्छे जीवन यापन और उनकी सहायता के लिए काम करने का मौका मिला था. वहीं से उन्हें जरुरत मंद लोगों की सेवा करने का जज्बा पैदा हुआ. हालाँकि पहले से ही उनके मन में सिविल सर्विसेज में जाने का विचार था.
दूसरे प्रयास में सफलता
इसके पहले 2017 में प्रीलिम्स परीक्षा दी थी परन्तु इस परीक्षा में उनके कम अंक रहे. दूसरे प्रयास में उन्होंने यूपी पीसीएस -2018 की परीक्षा में सेकेंड स्थान हासिल किया.
पढाई के दौरान योग और मेडिटेशन
अपने आप को बेहतर विकसित करने में योग और मेडिटेशन का भी सहयोग लिया.
JNU से PHD छोड़ी
बीएससी के बाद संगीता ने दिल्ली की इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से उन्होंने नेचुरल रिसॉर्स मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उसके बाद पीएचडी के लिए जेएनयू में दाखिला लिया. परन्तु सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए पीएचडी छोड़ दी. उनके एक सीनियर ने इसकी तैयारी करने में काफी मदद की.
सोशल लाइफ एकदम खत्म
बचपन से ही पढ़ाई को लेकर वह हमेशा गंभीर रही हैं। इसलिए संगीता ने 2015 से अपनी सोशल लाइफ एकदम खत्म कर दी थी। वह केवल वॉट्सऐप का इस्तेमाल अपने काम के लिए करती थीं। न दोस्तों से ज्यादा मिलना न ही किसी पारिवारिक समारोह का वह हिस्सा बनना।
रिश्तेदार कहते थे शादी कर दो, पापा कहते थे पढ़ेगी मेरी बेटी
घंटों पढ़ाई करना और हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहने की इच्छा ने ही उन्हें आज अधिकारी बनाया है। जिसका वह हमेशा से इंतजार कर रही थीं। परिवार ने कभी भी क्यों, क्या, कैसे जैसे कोई भी सवाल नहीं किए। शादी के लिए आसपास के लोग और रिश्तेदार कहते रहते थे लेकिन पिता ने हमेशा कहा कि बच्ची अभी तैयारी कर रही है तो इसलिए शादी का प्रेशर हम उसे नहीं देंगे।