टैक्सी चलाकर पति ने उठाया पढ़ाई का खर्च
रूपा यादव (Roopa Yadav)के ससुराल वाले उनके घरवालों की तरह ही छोटे किसान थे। खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही थी कि वे रूपा के उच्च शिक्षा का खर्च उठा सकें। फिर उनके पति ने टैक्सी चलानी शुरू और अपनी कमाई से उनके पढ़ाई का खर्च जुटाने लगे। अंतत खेती के और टैक्सी से कुछ आमदनी हुई तो रूपा ने आगे की पढ़ाई की।
आजकल के जमाने में बाल विवाह तो तो लगभग पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं। पहले के समय में सभी विवाहें तो छोटे उम्र में ही होती थी। बाल विवाह की सबसे बड़ी खामी थी की इसमें बालवस्था में ही वर वधु की शादी हो जाती थी, जिसके कारण बलावस्था में ही लड़के-लड़कियों का भविष्य अंधकारमय हो जाता था और उनका कोई भी सपना साकार नहीं हो पाता था।
राजस्थान (Rajasthan) के जयपुर (Jaipur) जिले के चौमू क्षेत्र के करेरी गांव (Kareri Village) की रहने वाली रूपा यादव (Roopa Yadav) जिनकी उम्र विवाह के समय में मात्र 8 साल की थी। शादी के समय उनकी पति का उम्र भी 12 साल ही था। इतनी कम उम्र में शादी के बाद भी अपने पढ़ाई को जारी रखते अपने मेहनत के बदौलत 21 साल के उम्र में नीट-2017 में 603 अंक प्राप्त किए। नीट-2017 में सफलता के बाद उनकी दाखिला राज्य के सरकारी काॅलेज में हुई। वहां से रूपा यादव की सफलता की कहानी शुरू हुई।
पढ़ाई में थी तेज तरार :
रूपा यादव शादी के बाद जब 10वीं क्लास में पढ़ती थी तो उनका गौना हुआ। 10 वीं की पढ़ाई करने के बाद जब वह ससुराल गई तो उन्हें पता चला कि उन्हें दसवीं के रिजल्ट में 84 % अंक आया है। इसके बाद रूपा यादव के ससुराल में यह चर्चा होने लगी कि लड़की पढ़ाई में तेज तरार है जिसके कारण उनके जीजा बाबूलाल ने आगे की पढ़ाई के लिए उनका दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करवा दिया। वे 11वीं में 81 प्रतिशत और 12वीं की परीक्षा में 84 प्रतिशत अंक के साथ सफल रहीं।
चाचा की मौत से डॉक्टर बनने का संकल्प लिया :
रूपा (Roopa Yadav) के डॉक्टर बनने के पीछे भी एक कहानी छुपी हुई है। दरअसल, पढ़ाई के दौरान उनके चाचा भीमाराम यादव की हार्ट अटैक से मौत हो गई। इसके बाद रूपा ने ठान लिया कि वह डॉक्टर बनेगी, क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाया था, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। बाद में रूपा ने अपने मेहनत के बदौलत डाॅक्टर बनने का संकल्प पुरा किया।
कोटा में रहकर की मेडिकल की तैयारी :
12 वीं में अच्छे अंक लाने के बाद रूपा (Roopa Yadav) के जीजा बाबूलाल ने किसी परिचित के कहने पर कोटा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में रूपा का प्रवेश दिलवाया। वहाँ वह रोजाना 8 से 9 घंटे सेल्फ स्टडी करती थी। रूपा बताती हैं कि कोटा में जब वे पढ़ने आई तो वहां का माहौल सकारात्मक और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाला था। शिक्षक बहुत मदद करते थे। कोटा में रहकर एक साल मेहनत करके वे लक्ष्य के बहुत करीब पहुँच गई। उनके एक साल तैयारी के बाद नम्बर नहीं आया। अब आगे पढ़ने में फिर फीस की दिक्कत सामने आने लगी। इस पर रूपा के द्वारा पारिवारिक हालात बताने पर संस्थान द्वारा 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी गई। इसके बाद उन्होंने फिर से दिन-रात मेहनत की तथा 603 अंक प्राप्त किए। उनका नीट रैंक 2283 है।
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